Wednesday, 13 May 2009

ना जाने क्यूँ

चश्मा-ए-नूर बहते हैं शहर मैं उजाला ही उजाला है,
ना जाने क्यूँ मेरी दहलीज़ पे मुसलसल अंधेरा है?

बहते है आब-ए-ज़म-ज़म हर तरफ बरक़त का डेरा है,
ना जाने क्यूँ मेरे आँगन मैं सूखे का बसेरा है?

बरसती रोंनके, हर्सू चमन मैं चाँदनी फेली,
ना जाने क्यूँ मेरी आँखों मैं धूंधुलकों का पहरा है?

धड़कते दिल मोहबतों मैं कभी डूबे कभी ,उ
भरे,ना जाने क्यूँ मेरे दिल को बेरूख़ियों ने घेरा है?

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