Saturday 13 June 2009

यूँही

आतिश-ए- जज़्बात सुलगते रहे शब-ओ-रोज़ यूँही,

इंतज़ार –ए-मेहरबान का चरमरता रहा हर रोज़ यूँही!


पलकों ने बुहरा राहों को, अश्कों ने लगाए फव्वारे,

धड़कन ने छेड़े साज़ कई, सिसकी से बँधी साँसे यूँही!


तन्हा लम्हों से सजी महफ़िल, हर आहट पे दिल धड़के कभी,

इंतज़ार-ए-उलफत से हुई शामें सियाह,हर रोज़ जागे उम्मीद यूँही!


आने का मंज़र क्या होगा, कैसी होगी मुलाकात भला,

नज़रें पथराई, बोझिल सी, राहों मैं पड़ा दिल जाने यूँही!


आँखों मैं धड़कता दिल हर्सू मुलाकात के सपने बुनता रहा,

मैं हँसती- रोती, सोती-जगती, सपनो मैं अपने सुलगती यूँही



composed on 10th April 2000

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