Thursday 28 May 2009

Zakm

ज़ख़्म सील भी दिए हमने ना खबर होने दी,
लगा के भूल भी जाते हैं कैसे गुम-ख्वार हैं अब.
दफ़ा किया सभी यादों को जिनसे उलझन थी,
एक ज़माना हुआ यादें भी अब नहीं आतीं.
ज़माना कहता है खुशाल बड़ी दिखती हो,
शमा का दर्द ये रोशन शरारे क्या जाने.
आह! निकलती है और असर अक्सर नहीं होता,
दिल अभी और गमों की बर्दाश्त शायद रखता है.
मिल गये गर अर्श पर तो पूछेंगे सनम!,
सज़ा तो जीली मगर जुर्म तो बता दिया होता,.
मिली फ़ुर्सत कभी ए दिल तो तुझे समझेगे
इस जन्म मैं तो ख़ाता हमारा कभी पूरा ना हुआ.
फलक से कोई तो आवाज़ शायद गूंजेगी कभी,
वही मेरी भी तुझे कभी तो नज़िल होगी,
इसी उम्मीद पे बैठा है दिल ये आस लिए,
कमी कभी तो फिर से मेरी खलेगी ज़रूर तुझे

तो कोई क्या करिए

देखे दिलबर भी अजनबी की तरह, तो कोई क्या करिए,
भीड़ क़यामत की हो गर साथ तो कोई क्या करिए.
उन्हे मैंभीड़ मैं नज़र नहीं आती,
सूरत-ए-आशिक़ मुझे हर्सू नज़र आए तो कोई क्या करिए.

के - ढूंडे से नहीं मिलती मुझे मेरी सूरत,
ज़माना-ए-जफाई किस क़दर फेला हे अब,
अक्स अपना भी बेवफा गर जो निकले, कौनसी शे है जिसे कोई फिर अपना समझे.
निकाल भी दूँ मैं कलेजा चीर के अपना, वो ठोकर मार के चल्दे, तो कोई क्या करिए.

साथ जब राह गुज़र बीच मैं ही छोड़ दे तो कोई बात नहीं,
मंज़िल पे गर वो खींच ले दामन यूँ ही तो कोई क्या करिए,
लड़के समंदर से जीती थी बाज़ी जान की हमने,
गर संग-ए-साहिल ही डूबो दे तो कोई क्या करिए.

क्या होती है मिसाल-ए-मोहब्बत क्या ख़बर,
मेरी बर्बादी को अक्सर लोग मोहब्बत कहते है.
दिल लगाया भी, जीता भी और बहुत खूश भी हुए,
दिल के जज़्बात कोई लूट ले तो कोई क्या करिए.

चाँदनी रात मैं जब चाँद नदारद हो गर,
चाँदनी को ही ज़ालिम ज़माना कहे तो कोई क्या करिए.
इल्ज़ाम बहुत बूँदों पे बरसाते है लोग अक्सर,
मेघ गर रुख़ ना करे मेरे घर का तो कोई क्या करिए.

Monday 25 May 2009

आशिक़

सब्र आशिक़ से ना माँगो के उसे सब्र कहाँ,
तलब मैं खुद ही वो बे सुध है उसे होश कहाँ.

बेशुमार आँसू हैं उसकी महफ़िल मैं,
बनाया कक्कासा ग़मों को, ग़ज़ल उसकी सिसकी है.

ना माँगो खुशियाँ तो बेहतर है उससे लोगों सुनो,
दामन आँसू भरा होगा तो दिल दर्दो भरा.

दर्द-ए- हस्ती है और खून-ए जिगर आँखों मैं,
शमा से बैर है और रातों से दोस्ताना है.

ना माँगो रोशिनी आशिक़ से तो ही बेहतर है,
जला भी सकती है दिलजले के दिल से निकली है.

जला के ख्वाब वो देखता है तमाशा अपना,
वो ही ख्वाब कभी लकते-ए- जिगर होते थे.

चला था जान कर फूलों भरी होंगी राहें,
छिपे काँटों ने किया घायल अधूरी राहों मैं.

ना पूछो राह इस घायल से तो ही बेहतर है,
जिसकी राहें छीनी, मंज़िल गुमी और खुद की खुदी.

कर सको गर तो बस इतना बा-खुदा तुम करना,
गिने कुछ चंद आशिकों मैं इसे शुमार रखना.

Saturday 23 May 2009

भरी आँखे

भरी आँखों से देखे ख्वाब अक्सर टूट जाते हैं,
हुई नम अपनी आखों से कहो नूरानी होने को.
जो देखे ख्वाब, उन ख्वाबों को हरदम याद रखना तुम,
के चमकती शोख नज़रों से आसमाँ भी हैं झुक जाते.

कभी पलकें जो फिर हों नम, उन्हे नम होने देना तुम,
ज़माने से बचा के रखना अपनी भीगी पलकें तुम.
भरी आँखों से कहना सजदे मैं जाके बहा आँसू,
के सजदे मैं गिरे आँसू दुआ बन के उभरते हैं.

ये फ़ितरत आम है ज़ालिम ज़माने की सम्भलना तुम,
तुम्हे यूँ जान कर औरत कहीं कमज़ोर ना समझे.
ना रुकना तुम, ना थकना तुम, है रब ही तेरा रखवाला,
हो तुम औरत, मुक्कमल हो, तुम्हारी शान है आला

तमाशाई ज़माने से हमेशा दूर रहना तुम,
छुपे हैं भेड़िए अक्सर इधर इंसान की सूरत मैं.
बचाके रखना हर आँसू खुदा की इबादत को,
वही था संग, वही होगा, बस ये ही याद रखना तुम.

Wednesday 20 May 2009

जल्दी

हर वक़्त बड़ी घबराहट है, हर वक़्त बहुत बेताबी है,
जीवन को ज़िंदा होने की हर वक़्त बड़ी बेसब्री है.
यूँ लगे मुझे फिर गर्भ मैं हूँ, मचलाती हुई चंचल सी कली,
जीवन से वाबस्ता होने की मुझको बड़ी अब जल्दी है?

मेरे ख्वाब पड़े थे सुस्त बड़े ,उनमे भी गरमागरमी है,
दबी मेरी मुस्कानों को कहकहों मैं बदलने की जल्दी है.
मेरे ख्वाबों के बीजों को पड़े, इस धरती मैं इक अरसा हुआ,
इन ख्वाबों की तबीरों को सच होने की बेसब्री है !

बेसब्र समाँ, बेसब्र घटा, बेसब्र बसंत, बेसब्र हवा,
इन सब को मुझ से मिलने की शायद उतनी ही जल्दी है!
डाला सब कुछ कल पे था क्यों, क्यों वक़्त गवाया बेमतलब?
मुझे अपने बनाए जालों से, फिर आज़ादी की जल्दी है.

यूँ लगे की सबकुछ मुमकिन है, मेरे ख्वाब कहाँ अब ख्वाब रहे?
आँखें खोलूं और देखूं खुद, राहों पे खड़ी मंज़िल के संग.
मुझको राहों पे चलने की अब देखों कितनी जल्दी है.
मुझको मंज़िल से मिलने की, मेरी जान बड़ी अब जल्दी हैं.

Monday 18 May 2009

गुमशुदा सी ज़िंदगी

गुमशुदा है ज़िंदगी, घर मैं भी, घर के बाहर भी,
गुम हैं हम- तुम ज़िंदगी की दौड़ मैं गुम हैं सभी.

खुशियाँ है गुम, गुम है हँसी, सुकून की कमी से है खलिश,
हर साँस गहरी- गहरी सी,हर साँस उथली- उथली सी.

हम- तुम है गुम इस भीड़ मैं, फिर भी अकेले से लगें,
कारवाँ दुनियाँ का है और तन्हा -तन्हा हम- तुम .रहें.

ज़मीं भागती पाँव से कहीं, और आकाश की तलाश है,
अर्थ गुम हैं कहीं और माएनों की तलाश हे.

साँसे जो गिन के हैं मिली, कुछ बीत गयी कुछ हैं बची,
भूल के साँसों को जीना, जन्नतों की तलाश है.

जो फूल बोए थे कभी, उन फूलों की तलाश है,
गुमशुदा है ज़िंदगी मुझे ज़िंदगी की तलाश है.

Sunday 17 May 2009

भागा जीवन

भागा जीवन लो भाग चला, वो देखो मेरे हाथों से!
मैं खड़ी- खड़ी बस तकती रही, वो चलता रहा मैं खड़ी रही.

मैं बच्ची थी मासूम बड़ी , ये कल की ही तो बात रही,
मेरे बच्चे मामा बुलाएँ मुझे, एक लम्हा हुआ और उम्र बढ़ी.

मैं कल तक मा-मा तुतलाती थी, खाने को पैर पटकती थी,
एक लम्हा हुआ और आँख खुली, मेरी बिटिया मिली तुतलती हुई.

बस ये दे-दो और वो भी अभी, मेरी माँगे कभी ना ख़त्म हुई,
बचपन बिता पल भर मैं यूँही, योवन उससे पहले भागा.

कब गयी उम्र न पता चला , भागा जीवन और पीछे मैं,
कुछ देर को साँसे भर लूँ अब, कुछ देर ठहर के जी लूँ अब.

जीवन से लेके लम्हे कुछ चन्द, जी लूँ फिर से एक उम्र नयी,
एस भाग दौड़ के झमेले से, साँसे ले लूँ मैं फिर से नयी.

औरत

मैं ये करलूँ और ये भी संग
मैं संग मैं हवा के होके चलूं
मैं धरती हूँ मैं अंबर भी
मैं जल भी हूँ और धारा भी

मैं हर पे मैं ,हर पल मुझ मैं
मैं भीतर भी, मैं बाहर भी
मैं पल- पल मैं, मैं हर पल मैं
मेरे रंग अनोखे अंजाने

कुछ मस्त- मस्त कुछ तेज़ - तेज़
कुछ अलग- अलग कुछ ठहर-ठहर
मैं चलूं हवा के संग -संग
मैं रंगी हवा के रंग- रंग

मैं माँ भी हूँ, मैं बाबा कभी
मैं सखी कभी , कभी हूँ साथी
मैं बहन कभी,कभी हूँ राखी
मैं दुल्हन भी मैं दुर्गा भी
हर पल जीवन की उत्पत्ति

खुशहाल कभी और गमशुदा कभी
कुछ रोत्ती हुई कुछ हँसतीसी
मैं बस्ती हूँ सदियों से यहीं
हर पल जीती हर पल हँसती
मैं औरत हूँ ये मेरी हस्ती !!

Wednesday 13 May 2009

काफ़िर की शहादत

देख के दुनिया के गुम मैने अपनी दुआ वापस ले ली,
किस -किस की सुनेगा मलिक भी मैने अपनी जगह खाली करदी.

हैं बहुत पेरशन लोग यहाँ मेरी जगह पे सजदा करने को,
मैने दुनिया की खातिर यारों काफ़िर रहने की ज़िद कर ली.

तज़बी पे गुनाह गिने मैने, तज़बी पे सवाब चुने मैने,
गुनाह की गिनती लंबी थी, मेरी तज़बी दाना-दाना हुई.

मैने पिरोके फिर से दानो को, अपनी तज़बी ज़कात मैं दी,
दुनिया भूली सवाबों थी को, उम्मत ने छोरे गुनाह गिनने.
मैने उनकी गिनती की खातिर काफ़िर रहने की ज़िद कर ली

मैं गुनाह से बोझिल बैठी थी,मैने गुनाह मैं डूबे देख लिए.
हैं बहुत तड़प्ते बक्षिश को, मुझसे बदतर भी लोग यहाँ,
मैने उनकी बक्षिश की खातिर, काफ़िर रहने दी ज़िद करली.

ना जाने क्यूँ

चश्मा-ए-नूर बहते हैं शहर मैं उजाला ही उजाला है,
ना जाने क्यूँ मेरी दहलीज़ पे मुसलसल अंधेरा है?

बहते है आब-ए-ज़म-ज़म हर तरफ बरक़त का डेरा है,
ना जाने क्यूँ मेरे आँगन मैं सूखे का बसेरा है?

बरसती रोंनके, हर्सू चमन मैं चाँदनी फेली,
ना जाने क्यूँ मेरी आँखों मैं धूंधुलकों का पहरा है?

धड़कते दिल मोहबतों मैं कभी डूबे कभी ,उ
भरे,ना जाने क्यूँ मेरे दिल को बेरूख़ियों ने घेरा है?

Tuesday 12 May 2009

शरारे

ज़बान खामोश, लब चुप हैं;ना आखें बोलती हैं.
बदन सुन्न है, ना हरक़त है हरारत है.
या रब क्या मौत की आहट फ़खत एटनी भयानक है?

हल्का -फूलका मकई का दाना,
गर्म रेत पे भी खिल जाता! दिल बंजारा,
मस्ती का मारा, तूफान मैं भी मुस्काता!!
कल की एसी की ,टेसी आज को जीलो जी भर के!
परदा जीवन के थियेटर जाने किस पल मैं गिर जाएगा!!

देख के दुनिया के गुम मैने अपनी दुआ वापस ले ली,
किस किस की सुनेगा मलिक भी मैने अपनी जगह खाली करदी.
हैं बहुत पेरशन लोग यहाँ मेरी जगह पे सजदा करने को,
मैने दुनिया की खातिर यारों काफ़िर रहने की ज़िद कर ली.

हंस के कर देंगे हर गुम-ग़लत तेरी खातिर,
लगेगी कुछ देर तेरे गुम से जुदा होने मैं.
चढ़ा खुमार जो एक एरसे से इन फूलों पे,
लगेगा वक़्त ज़रा इनको फन्नाह होने मैं.

लगा के काश, चले पकड़ के सड़क, मोड़ पे ही जा बैठे!
ना पता घर का है, मंज़िल का, ना ही रास्ते का,
गुमी ढुंडुल्कों मैं राहे तो कोई क्या करिए?
बेपनाह बैठे हैं वो आए तो कोई रह मिले.

ख्वाहिशों का समंदर बड़ा ही गहरा है.
तमन्नाओं का बेज़ार बेहद फेला है,
करे तिजारत कोई यहाँ कैसे बोलो,
हर ख्वाहिश का दाम यहाँ से भी मेंहगा है.

Monday 11 May 2009

Antim Safar

Antim Safar

Thanda badan, pathraya chehra, boot si lage surat bhi ab
Barf ki silli pe dale mujhko rote mere sab,
Naam bhi gumnaam hai mujhko bulate laash hain,
Zindgi aur maut ka ye Akhiri kagaar hai.

Maut ki sardi badi hai, kafn kafi Wallah nahin hai!
Antim snaan bhi hai baki, lakdiyan sukhi padi hain.
Akhiri singar ka sindoor bhi baki pada hai,
Mere Antim safar ka ye abhi agaaz hai.

Ho jayegi lamhon main vidai, sabr se bandhi arthi padi hai.
Rote bilakhte apno ko kaise dilaon dhandas bhala?
Char din ki zindgi hai, peeche mere hi khade hain.
Kis baat ka rona bifarna, mukaam sabka ek hai hona.

Sang chale kuch punya mere, toli chali gunah ki.
Tauba zaban pe rundhi hai, ghabrahat thodi si badi hai.

Apno ko kho ke milun ja apno se phir main wahan.
Maa ka khoya sung main paon , dun main ye phir se sada.
Etni khwahish, ye tamanna hai meri rooh main basi.
Ghut chuki sanson main ghuti akhiri chahat phansi.

Jalti chita ki meethi garmi,bhasm sab jojayega.
Jeevan maran ke chakr se daman mera chut jayega.
Kya Qyamat hogi kabhi, meri Qyamat ho chuki.
Dekhna hai ghar kahan phir ab mera ho payega.

Karsako to muaf karna, meri sab nadaniyan.
Jane anjane kari jo kadvi-teekhi gustakhiyan.
Padh ke Fatiyah mujh pe baksh dena mere kasoor.
Antim safar ki akhiri chahaton main, ye bhi chahat hai zaroor.

Saturday 9 May 2009

Maa

Tapte badan pe gili patti,
Bachpan ki chot pe tandi mitti,
Jaltey zakham pe barf ke jaisi,
Sukhe gale main sharbat jaisi
Meri maa ki yaadain hain esi.

Roti ankhon ki bhigi palkain,
Hanste chehre ki kanpti muskan,
Jaith ki garmi aur pedon ki chanw
Bhadon ke aasman ka badal,
En main chupa meri maa ka anchal.

Darr ke andhere main Ishwar ka ehsaas,
Duniya ki bheed aur maa ka ek haath,
Hare hue mann ki akhiri ummeed,
Tute rishton ki pehli aur akhiri janzeer.
Maa ki yaadain ab sab hain tasveer.

Wednesday 6 May 2009

मेरा Mann

Mera Mann
doob ke phir ubhrey, ubhar ke phir doobey,
machalti phirti si lehron main hum bhi khoob phasey.

Khayalon se agey, khayalon ki peechey।
Zindgi se agey, zindgi ke peechey.
Na jaane kaun bhagey, mera mann kaun bhagey.

Na chahat hai, na gum hi hai,
akelapan harsu ujagar hai.
Udasi bhi jise na keh sakoon esi udasi hai.

Na dard-o-gum hai mere sang na koi kehkahe hi hain.
Meri dehleez pe yaroon abhi patjhad ke saye hain.

Toot ke daal se ja gir pada ek phool mandir main.
Woh gum darkhat ka sinchey ya rashk kismat ko bheje?

Pesho-paish se bojhil mera mann sabr tohe hai,
Darkhat ke haseen lamhon ko phir se tatoley hai.
Pada mandir ki seedhi par mera mann daal dhoondey hai.