Monday 18 May 2009

गुमशुदा सी ज़िंदगी

गुमशुदा है ज़िंदगी, घर मैं भी, घर के बाहर भी,
गुम हैं हम- तुम ज़िंदगी की दौड़ मैं गुम हैं सभी.

खुशियाँ है गुम, गुम है हँसी, सुकून की कमी से है खलिश,
हर साँस गहरी- गहरी सी,हर साँस उथली- उथली सी.

हम- तुम है गुम इस भीड़ मैं, फिर भी अकेले से लगें,
कारवाँ दुनियाँ का है और तन्हा -तन्हा हम- तुम .रहें.

ज़मीं भागती पाँव से कहीं, और आकाश की तलाश है,
अर्थ गुम हैं कहीं और माएनों की तलाश हे.

साँसे जो गिन के हैं मिली, कुछ बीत गयी कुछ हैं बची,
भूल के साँसों को जीना, जन्नतों की तलाश है.

जो फूल बोए थे कभी, उन फूलों की तलाश है,
गुमशुदा है ज़िंदगी मुझे ज़िंदगी की तलाश है.

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