Tuesday 12 May 2009

शरारे

ज़बान खामोश, लब चुप हैं;ना आखें बोलती हैं.
बदन सुन्न है, ना हरक़त है हरारत है.
या रब क्या मौत की आहट फ़खत एटनी भयानक है?

हल्का -फूलका मकई का दाना,
गर्म रेत पे भी खिल जाता! दिल बंजारा,
मस्ती का मारा, तूफान मैं भी मुस्काता!!
कल की एसी की ,टेसी आज को जीलो जी भर के!
परदा जीवन के थियेटर जाने किस पल मैं गिर जाएगा!!

देख के दुनिया के गुम मैने अपनी दुआ वापस ले ली,
किस किस की सुनेगा मलिक भी मैने अपनी जगह खाली करदी.
हैं बहुत पेरशन लोग यहाँ मेरी जगह पे सजदा करने को,
मैने दुनिया की खातिर यारों काफ़िर रहने की ज़िद कर ली.

हंस के कर देंगे हर गुम-ग़लत तेरी खातिर,
लगेगी कुछ देर तेरे गुम से जुदा होने मैं.
चढ़ा खुमार जो एक एरसे से इन फूलों पे,
लगेगा वक़्त ज़रा इनको फन्नाह होने मैं.

लगा के काश, चले पकड़ के सड़क, मोड़ पे ही जा बैठे!
ना पता घर का है, मंज़िल का, ना ही रास्ते का,
गुमी ढुंडुल्कों मैं राहे तो कोई क्या करिए?
बेपनाह बैठे हैं वो आए तो कोई रह मिले.

ख्वाहिशों का समंदर बड़ा ही गहरा है.
तमन्नाओं का बेज़ार बेहद फेला है,
करे तिजारत कोई यहाँ कैसे बोलो,
हर ख्वाहिश का दाम यहाँ से भी मेंहगा है.

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