Sunday 17 May 2009

भागा जीवन

भागा जीवन लो भाग चला, वो देखो मेरे हाथों से!
मैं खड़ी- खड़ी बस तकती रही, वो चलता रहा मैं खड़ी रही.

मैं बच्ची थी मासूम बड़ी , ये कल की ही तो बात रही,
मेरे बच्चे मामा बुलाएँ मुझे, एक लम्हा हुआ और उम्र बढ़ी.

मैं कल तक मा-मा तुतलाती थी, खाने को पैर पटकती थी,
एक लम्हा हुआ और आँख खुली, मेरी बिटिया मिली तुतलती हुई.

बस ये दे-दो और वो भी अभी, मेरी माँगे कभी ना ख़त्म हुई,
बचपन बिता पल भर मैं यूँही, योवन उससे पहले भागा.

कब गयी उम्र न पता चला , भागा जीवन और पीछे मैं,
कुछ देर को साँसे भर लूँ अब, कुछ देर ठहर के जी लूँ अब.

जीवन से लेके लम्हे कुछ चन्द, जी लूँ फिर से एक उम्र नयी,
एस भाग दौड़ के झमेले से, साँसे ले लूँ मैं फिर से नयी.

No comments:

Post a Comment