Sunday 17 May 2009

औरत

मैं ये करलूँ और ये भी संग
मैं संग मैं हवा के होके चलूं
मैं धरती हूँ मैं अंबर भी
मैं जल भी हूँ और धारा भी

मैं हर पे मैं ,हर पल मुझ मैं
मैं भीतर भी, मैं बाहर भी
मैं पल- पल मैं, मैं हर पल मैं
मेरे रंग अनोखे अंजाने

कुछ मस्त- मस्त कुछ तेज़ - तेज़
कुछ अलग- अलग कुछ ठहर-ठहर
मैं चलूं हवा के संग -संग
मैं रंगी हवा के रंग- रंग

मैं माँ भी हूँ, मैं बाबा कभी
मैं सखी कभी , कभी हूँ साथी
मैं बहन कभी,कभी हूँ राखी
मैं दुल्हन भी मैं दुर्गा भी
हर पल जीवन की उत्पत्ति

खुशहाल कभी और गमशुदा कभी
कुछ रोत्ती हुई कुछ हँसतीसी
मैं बस्ती हूँ सदियों से यहीं
हर पल जीती हर पल हँसती
मैं औरत हूँ ये मेरी हस्ती !!

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