Thursday 28 May 2009

Zakm

ज़ख़्म सील भी दिए हमने ना खबर होने दी,
लगा के भूल भी जाते हैं कैसे गुम-ख्वार हैं अब.
दफ़ा किया सभी यादों को जिनसे उलझन थी,
एक ज़माना हुआ यादें भी अब नहीं आतीं.
ज़माना कहता है खुशाल बड़ी दिखती हो,
शमा का दर्द ये रोशन शरारे क्या जाने.
आह! निकलती है और असर अक्सर नहीं होता,
दिल अभी और गमों की बर्दाश्त शायद रखता है.
मिल गये गर अर्श पर तो पूछेंगे सनम!,
सज़ा तो जीली मगर जुर्म तो बता दिया होता,.
मिली फ़ुर्सत कभी ए दिल तो तुझे समझेगे
इस जन्म मैं तो ख़ाता हमारा कभी पूरा ना हुआ.
फलक से कोई तो आवाज़ शायद गूंजेगी कभी,
वही मेरी भी तुझे कभी तो नज़िल होगी,
इसी उम्मीद पे बैठा है दिल ये आस लिए,
कमी कभी तो फिर से मेरी खलेगी ज़रूर तुझे

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