Wednesday 20 May 2009

जल्दी

हर वक़्त बड़ी घबराहट है, हर वक़्त बहुत बेताबी है,
जीवन को ज़िंदा होने की हर वक़्त बड़ी बेसब्री है.
यूँ लगे मुझे फिर गर्भ मैं हूँ, मचलाती हुई चंचल सी कली,
जीवन से वाबस्ता होने की मुझको बड़ी अब जल्दी है?

मेरे ख्वाब पड़े थे सुस्त बड़े ,उनमे भी गरमागरमी है,
दबी मेरी मुस्कानों को कहकहों मैं बदलने की जल्दी है.
मेरे ख्वाबों के बीजों को पड़े, इस धरती मैं इक अरसा हुआ,
इन ख्वाबों की तबीरों को सच होने की बेसब्री है !

बेसब्र समाँ, बेसब्र घटा, बेसब्र बसंत, बेसब्र हवा,
इन सब को मुझ से मिलने की शायद उतनी ही जल्दी है!
डाला सब कुछ कल पे था क्यों, क्यों वक़्त गवाया बेमतलब?
मुझे अपने बनाए जालों से, फिर आज़ादी की जल्दी है.

यूँ लगे की सबकुछ मुमकिन है, मेरे ख्वाब कहाँ अब ख्वाब रहे?
आँखें खोलूं और देखूं खुद, राहों पे खड़ी मंज़िल के संग.
मुझको राहों पे चलने की अब देखों कितनी जल्दी है.
मुझको मंज़िल से मिलने की, मेरी जान बड़ी अब जल्दी हैं.

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